मौर्य राजवंश

चन्द्रगुप्त मौर्य और मौर्यों का मूल
325 ईसापूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत (आज के पाकिस्तान का लगभग सम्पूर्ण इलाका) सिकन्दर के क्षत्रपों का शासन था जब सिकन्दर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तो एक ब्राह्मण जिसका नाम चाणक्य था (कौटिल्य नाम से भी जाना गया तथा वास्तविक नाम विष्णुगुप्त) मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आया उस समय मगध अच्छा खासा शक्तिशाली था तथा उसके पड़ोसी राज्यों की आंखों का काँटा पर तत्कालीन मगध के सम्राट धन नन्द ने उसको ठुकरा दिया
मौर्य प्राचीन क्षत्रिय कबीले के हिस्से रहे है। प्राचीन भारत छोटे -छोटे गणों में विभक्त था उस वक्त कुछ ही प्रमुख शासक जातिया थी जिसमे शाक्य , मौर्य का प्रभाव ज्यादा था ।चन्द्रगुप्त उसी गण प्रमुख का पुत्र था जो की चन्द्रगुप्त के बाल अवस्था में ही यौद्धा के रूप में मारा गया चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे 'इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया ,एवं एक सबल रास्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है
मगध पर विजय
चाणक्य का इरादा यूनानी क्षत्रपों तथा फ़ारसी और उनके सहयोगी सेनाओं की मदत से धनानंद पर धावा बोल देना था इसके बाद भारत भर में जासूसों (गुप्तचर) का एक जाल सा बिछा दिया गया जिससे राजा के खिलाफ गद्दारी इत्यादि की गुप्त सूचना एकत्र करने में किया जाता था - यह भारत में शायद अभूतपूर्व था एक बार ऐसा हो जाने के बाद उसने चन्द्रगुप्त को यूनानी क्षत्रपों को मार भगाने के लिए तैयार किया इस कार्य में उसे गुप्तचरों के विस्तृत जाल से मदत मिली मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में गृहयुद्ध को उकसाया उसके गुप्तचरों ने नन्द के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हे अपने पक्ष में कर लिया इसके बाद नन्द शासक ने अपना पद छोड़ दिया और चाणक्य को विजयश्री प्राप्त हुई नन्द को निर्वासित जीवन जीना पड़ा जिसके बाद उसका क्या हुआ ये अज्ञात है चन्द्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ उसको सत्ता का अधिकार भी मिला
साम्राज्य विस्तार
उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था मगध पर कब्जा होने के बाद चन्द्रगुप्त सत्ता के केन्द्र पर काबिज़ हो चुका था चन्द्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया इसकी जानकारी अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से मिलती है रूद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बाँध पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय गवर्नर था पश्चिमोत्तर भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया
चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर (अलेक्ज़ेन्डर) के सेनापति सेल्यूकस को ३०५ ईसापूर्व के आसपास हराया था ग्रीक विवरण इस विजय का उल्ले़ख नहीं करते हैं पर इतना कहते हैं कि चन्द्रगुप्त (यूनानी स्रोतों में सैंड्रोकोटस नाम से द्योतित) और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने कंदहार, काबुल, हेरात और बलूचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए थे इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने उसे ५०० हाथी भेंट किए थे इतना भी कहा जाता है चन्द्रगुप्त ने या उसके पुत्र बिंदुसार ने सेल्यूकस की बेटी से वैवाहिक संबंध स्थापित किया था सेल्यूकस ने मेगास्थनीज़ को चन्द्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था प्लूटार्क के अनुसार "सैंड्रोकोटस उस समय तक सिंहासनारूढ़ हो चुका था, उसने अपने ,००,००० सैनिकों की सेवा से सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और अपने अधीन कर लिया" यह टिप्पणी थोड़ी अतिशयोक्ति कही जा सकती है क्योंकि इतना ज्ञात है कि कावेरी नदी और उसके दक्षिण के क्षेत्रों में उस समय चोलों, पांड्यों, सत्यपुत्रों तथा केरलपुत्रों का शासन था अशोक के शिलालेख कर्नाटक में चित्तलदुर्ग, येरागुडी तथा मास्की में पाए गए हैं उसके शिलालिखित धर्मोपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल, पांड्य तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है चुंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि अशोक या उसके पिता बिंदुसार ने दक्षिण में कोई युद्ध लड़ा हो और उसमें विजय प्राप्त की हो अतः ऐसा माना जाता है उनपर चन्द्रगुप्त ने ही विजय प्राप्त की थी अपने जीवन के उत्तरार्ध में उसने जैन धर्म अपना लिया था और सिंहासन त्यागकर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में अपने गुरु जैनमुनि भद्रबाहु के साथ सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगा था
मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक राजवंश था इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया
यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था।अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ
शासकों की सूची
  • चन्द्रगुप्त मौर्य- 322 ईसापूर्व- 298 ईसापूर्व
  • बिन्दुसार -297 ईसापूर्व -272 ईसापूर्व
  • अशोक -273 ईसापूर्व -232 ईसापूर्व
  • दशरथ मौर्य -232 ईसापूर्व- 224 ईसापूर्व
  • सम्प्रति -224 ईसापूर्व- 215 ईसापूर्व
  • शालिसुक- 215 ईसापूर्व- 202 ईसापूर्व
  • देववर्मन् -202 ईसापूर्व -195 ईसापूर्व
  • शतधन्वन् मौर्य -195 ईसापूर्व 187 ईसापूर्व
  • बृहद्रथ मौर्य -187 ईसापूर्व- 185 ईसापूर्व

 325 ईसापूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत (आज के पाकिस्तान का लगभग सम्पूर्ण इलाका) सिकन्दर के क्षत्रपों का शासन था जब सिकन्दर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तो एक ब्राह्मण जिसका नाम चाणक्य था (कौटिल्य नाम से भी जाना गया तथा वास्तविक नाम विष्णुगुप्त) मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आया उस समय मगध अच्छा खासा शक्तिशाली था तथा उसके पड़ोसी राज्यों की आंखों का काँटा पर तत्कालीन मगध के सम्राट धन नन्द ने उसको ठुकरा दिया
मौर्य प्राचीन क्षत्रिय कबीले के हिस्से रहे है। प्राचीन भारत छोटे -छोटे गणों में विभक्त था उस वक्त कुछ ही प्रमुख शासक जातिया थी जिसमे शाक्य , मौर्य का प्रभाव ज्यादा था ।चन्द्रगुप्त उसी गण प्रमुख का पुत्र था जो की चन्द्रगुप्त के बाल अवस्था में ही यौद्धा के रूप में मारा गया चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे 'इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया ,एवं एक सबल रास्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है
मगध पर विजय
चाणक्य का इरादा यूनानी क्षत्रपों तथा फ़ारसी और उनके सहयोगी सेनाओं की मदत से धनानंद पर धावा बोल देना था इसके बाद भारत भर में जासूसों (गुप्तचर) का एक जाल सा बिछा दिया गया जिससे राजा के खिलाफ गद्दारी इत्यादि की गुप्त सूचना एकत्र करने में किया जाता था - यह भारत में शायद अभूतपूर्व था एक बार ऐसा हो जाने के बाद उसने चन्द्रगुप्त को यूनानी क्षत्रपों को मार भगाने के लिए तैयार किया इस कार्य में उसे गुप्तचरों के विस्तृत जाल से मदत मिली मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में गृहयुद्ध को उकसाया उसके गुप्तचरों ने नन्द के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हे अपने पक्ष में कर लिया इसके बाद नन्द शासक ने अपना पद छोड़ दिया और चाणक्य को विजयश्री प्राप्त हुई नन्द को निर्वासित जीवन जीना पड़ा जिसके बाद उसका क्या हुआ ये अज्ञात है चन्द्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ उसको सत्ता का अधिकार भी मिला
साम्राज्य विस्तार
उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था मगध पर कब्जा होने के बाद चन्द्रगुप्त सत्ता के केन्द्र पर काबिज़ हो चुका था चन्द्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया इसकी जानकारी अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से मिलती है रूद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बाँध पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय गवर्नर था पश्चिमोत्तर भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया
चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर (अलेक्ज़ेन्डर) के सेनापति सेल्यूकस को ३०५ ईसापूर्व के आसपास हराया था ग्रीक विवरण इस विजय का उल्ले़ख नहीं करते हैं पर इतना कहते हैं कि चन्द्रगुप्त (यूनानी स्रोतों में सैंड्रोकोटस नाम से द्योतित) और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने कंदहार, काबुल, हेरात और बलूचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए थे इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने उसे ५०० हाथी भेंट किए थे इतना भी कहा जाता है चन्द्रगुप्त ने या उसके पुत्र बिंदुसार ने सेल्यूकस की बेटी से वैवाहिक संबंध स्थापित किया था सेल्यूकस ने मेगास्थनीज़ को चन्द्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था प्लूटार्क के अनुसार "सैंड्रोकोटस उस समय तक सिंहासनारूढ़ हो चुका था, उसने अपने ,००,००० सैनिकों की सेवा से सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और अपने अधीन कर लिया" यह टिप्पणी थोड़ी अतिशयोक्ति कही जा सकती है क्योंकि इतना ज्ञात है कि कावेरी नदी और उसके दक्षिण के क्षेत्रों में उस समय चोलों, पांड्यों, सत्यपुत्रों तथा केरलपुत्रों का शासन था अशोक के शिलालेख कर्नाटक में चित्तलदुर्ग, येरागुडी तथा मास्की में पाए गए हैं उसके शिलालिखित धर्मोपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल, पांड्य तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है चुंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि अशोक या उसके पिता बिंदुसार ने दक्षिण में कोई युद्ध लड़ा हो और उसमें विजय प्राप्त की हो अतः ऐसा माना जाता है उनपर चन्द्रगुप्त ने ही विजय प्राप्त की थी अपने जीवन के उत्तरार्ध में उसने जैन धर्म अपना लिया था और सिंहासन त्यागकर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में अपने गुरु जैनमुनि भद्रबाहु के साथ सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगा था

बिंदुसार
चन्द्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार सत्तारूढ़ हुआ पर उसके बारे में अधिक ज्ञात नहीं है दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार का श्रेय यदा कदा बिंदुसार को दिया जाता है हँलांकि उसके विजय अभियान का कोई साक्ष्य नहीं है जैन परम्परा के अनुसार उसकी माँ का नाम दुर्धर था और पुराणों में वर्णित बिंदुसार ने २५ वर्षों तक शासन किया था उसे अमित्रघात (दुश्मनों का संहार करने वाला) की उपाधि भी दी जाती है जिसे यूनानी ग्रंथों में अमित्रोचटस का नाम दिया जाता है
 अशोक
: सम्राट अशोक

सम्राट अशोक, भारत के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक हैं साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में भी उसका नाम अक़बर जैसे महान शासकों के साथ लिया जाता है कुछ विद्वान तो उसे विश्व इतिहास का सबसे सफल शासक भी मानते हैं अपने राजकुमार के दिनों में उसने उज्जैन तथा तक्षशिला के विद्रोहों को दबा दिया था पर कलिंग की लड़ाई उसके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई और उसका मन युद्ध में हुए नरसंहार से ग्लानि से भर गया उसने बौद्ध धर्म अपना लिया तथा उसके प्रचार के लिए कार्य किया ।अशोक को बॉद्ध धमृ मे उपगुप्त ने दिक्षित किया था। उसने देवानांप्रिय, प्रियदर्शी, जैसी उपाधि धारण की।अशोक के शिलालेख तथा शिलोत्कीर्ण उपदेश भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह पाए गए हैं उसने धम्म का प्रचार करने के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजे जिन-जिन देशों में प्रचारक भेजे गए उनमें सीरिया तथा पश्चिम एशिया का एंटियोकस थियोस, मिस्र का टोलेमी फिलाडेलस, मकदूनिया का एंटीगोनस गोनातस, साईरीन का मेगास तथा एपाईरस का एलैक्जैंडर शामिल थे अपने पुत्र महेंद्र को उसने राजधानी पाटलिपुत्र से श्रीलंका जलमार्ग से रवाना किया पटना (पाटलिपुत्र) का ऐतिहासिक महेन्द्रू घाट उसी के नाम पर नामकृत है युद्ध से मन उब जाने के बाद बी उसने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था ऐसा विदेशी आक्रमण से साम्राज्य के पतन को रोकने के लिए आवश्यक था बिन्दुसर आजिवक धरम को मानता था। उसने एक युनानी शासक से सूखी अन्जीर , मीठी शराब एक दार्शनिक की मांग की थी।

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