अशोक के शिलालेख

अशोक के शिलालेख
अशोक के १४ शिलालेख विभिन् लेखों का समूह है जो आठ भिन्-भिन् स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-
() धौली- यह उड़ीसा के पुरी जिला में है
() शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है
() मान सेहरा- यह पाकिस्तन के हजारा जिले में स्थित है
() कालपी- यह वर्तमान उत्तरांचल (देहरादून) में है
() जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है
() सोपरा- यह महराष्ट्र के थाणे जिले में है
() एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है
() गिरनार- यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है
अशोक के लघु शिलालेख
अशोक के लघु शिलालेख चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है जिसे लघु शिलालेख कहा जाता है ये निम्नांकित स्थानों से प्राप्त हुए हैं-
() रूपनाथ- यह मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में है
() गुजरी- यह मध्य प्रदेश के दतुया जिले में है
() भबू- यह राजस्थान के जयपुर जिले में है
() मास्की- यह रायचूर जिले में स्थित है
() सहसराम- यह बिहार के शाहाबाद जिले में है
धम्म को लोकप्रिय बनाने के लिए अशोक ने मानव पशु जाति के कल्याण हेतु पशु-पक्षियों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था राज्य तथा विदेशी राज्यों में भी मानव तथा पशु के लिए अलग चिकित्सा की व्य्वस्था की अशोक के महान पुण्य का कार्य एवं स्वर्ग प्राप्ति का उपदेश बौद्ध ग्रन्थ संयुक् निकाय में दिया गया है
अशोक ने दूर-दूर तक बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु दूतों, प्रचारकों को विदेशों में भेजा अपने दूसरे तथा १३वें शिलालेख में उसने उन देशों का नाम लिखवाया जहाँ दूत भेजे गये थे
दक्षिण सीमा पर स्थित राज्य चोल, पाण्ड्, सतिययुक् केरल पुत्र एवं ताम्रपार्णि बताये गये हैं
अशोक के अभिलेख
अशोक के अभिलेखों में शाहनाज गढ़ी एवं मान सेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं इसके अतिरिक् अशोक के समस्त शिलालेख लघुशिला स्तम्भ लेख एवं लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों से प्राप्त होता है
अभी तक अशोक के ४० अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं सर्वप्रथम १८३७ . पू. में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने अशोक के अभिलेख को पढ़ने में सफलता हासिल की थी
रायपुरबा- यह भी बिहार राज्य के चम्पारण जिले में स्थित है
प्रयाग- यह पहले कौशाम्बी में स्थित था जो बाद में मुगल सम्राट अकबर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखवाया गया था
अशोक के लघु स्तम्भ लेख
सम्राट अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-
. सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है
. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है
. रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है
. कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है
. निग्लीवा- नेपाल के तराई में है
. ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है
. सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील . पू. में स्थित है
. जतिंग रामेश्वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील . पू. में स्थित है
. एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है
१०. गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है
११. पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है
१२. राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है
१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है
१४. सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है
१५. नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है
अशोक के गुहा लेख
दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बराबर नामक तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण प्राप्त हुए हैं इन सभी की भाषा प्राकृत तथा ब्राह्मी लिपि में है केवल दो अभिलेखों शाहवाजगढ़ी तथा मान सेहरा की लिपि ब्राह्मी होकर खरोष्ठी है यह लिपि दायीं से बायीं और लिखी जाती है
तक्षशिला से आरमाइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख कन्धार के पास शारे-कुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमाइक द्विभाषीय अभिलेख प्राप्त हुआ है
अशोक के स्तम्भ लेख
अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन् स्थानों में पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं इन स्थानों के नाम हैं-
() दिल्ली तोपरा- यह स्तम्भ लेख प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में पाया गया था यह मध्य युगीन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं
() दिल्ली मेरठ- यह स्तम्भ लेख भी पहले मेरठ में था जो बाद में फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया
() लौरिया अरराज तथा लौरिया नन्दगढ़- यह स्तम्भ लेख बिहार राज्य के चम्पारण जिले में है
सैन्य व्यवस्था- सैन्य व्यवस्था छः समितियों में विभक् सैन्य विभाग द्वारा निर्दिष्ट थी प्रत्येक समिति में पाँच सैन्य विशेषज्ञ होते थे
पैदल सेना, अश् सेना, गज सेना, रथ सेना तथा नौ सेना की व्यवस्था थी
सैनिक प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी अन्तपाल कहलाता था यह सीमान्त क्षेत्रों का भी व्यवस्थापक होता था मेगस्थनीज के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना छः लाख पैदल, पचास हजार अश्वारोही, नौ हजार हाथी तथा आठ सौ रथों से सुसज्जित अजेय सैनिक थे
प्रान्तीय प्रशासन
चन्द्रगुप्त मौर्य ने शासन संचालन को सुचारु रूप से चलाने के लिए चार प्रान्तों में विभाजित कर दिया था जिन्हें चक्र कहा जाता था इन प्रान्तों का शासन सम्राट के प्रतिनिधि द्वारा संचालित होता था सम्राट अशोक के काल में प्रान्तों की संख्या पाँच हो गई थी ये प्रान्त थे-
प्रान्त राजधानी
प्राची (मध्य देश)- पाटलिपुत्र
उत्तरापथ - तक्षशिला
दक्षिणापथ - सुवर्णगिरि
अवन्ति राष्ट्र - उज्जयिनी
कलिंग - तोलायी
प्रान्तों (चक्रों) का प्रशासन राजवंशीय कुमार (आर्य पुत्र) नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था
कुमाराभाष्य की सहायता के लिए प्रत्येक प्रान्त में महापात्र नामक अधिकारी होते थे शीर्ष पर साम्राज्य का केन्द्रीय प्रभाग तत्पश्चात्प्रान्त आहार (विषय) में विभक् था ग्राम प्रशासन की निम्न इकाई था, १०० ग्राम के समूह को संग्रहण कहा जाता था
आहार विषयपति के अधीन होता था जिले के प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक था गोप दस गाँव की व्यवस्था करता था
नगर प्रशासन
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य शासन की नगरीय प्रशासन छः समिति में विभक् था
प्रथम समिति- उद्योग शिल्पों का निरीक्षण करता था
द्वितीय समिति- विदेशियों की देखरेख करता है
तृतीय समिति- जनगणना
चतुर्थ समिति- व्यापार वाणिज्य की व्यवस्था
पंचम समिति- विक्रय की व्यवस्था, निरीक्षण
षष्ठ समिति- बिक्री कर व्यवस्था
नगर में अनुशासन बनाये रखने के लिए तथा अपराधों पर नियन्त्रण रखने हेतु पुलिस व्यवस्था थी जिसे रक्षित कहा जाता था
यूनानी स्त्रोतों से ज्ञात होता है कि नगर प्रशासन में तीन प्रकार के अधिकारी होते थे-एग्रोनोयोई (जिलाधिकारी), एण्टीनोमोई (नगर आयुक्), सैन्य अधिकार
अशोक के परवर्ती मौर्य सम्राट- मगध साम्राज्य के महान मौर्य सम्राट अशोक की मृत्यु २३७-२३६ . पू. में (लगभग) हुई थी अशोक के उपरान्त अगले पाँच दशक तक उनके निर्बल उत्तराधिकारी शासन संचालित करते रहे
अशोक के उत्तराधिकारी- जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में अशोक के उत्तराधिकारियों के शासन के बारे में परस्पर विरोधी विचार पाये जाते हैं पुराणों में अशोक के बाद या १० शासकों की चर्चा है, जबकि दिव्यादान के अनुसार शासकों ने असोक के बाद शासन किया अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य पश्चिमी और पूर्वी भाग में बँट गया पश्चिमी भाग पर कुणाल शासन करता था, जबकि पूर्वी भाग पर सम्प्रति का शासन था लेकिन १८० . पू. तक पश्चिमी भाग पर बैक्ट्रिया यूनानी का पूर्ण अधिकार हो गया था पूर्वी भाग पर दशरथ का राज्य था वह मौर्य वंश का अन्तिम शासक है
मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्य सम्राट की मृत्यु (२३७-२३६ई. पू.) के उपरान्त करीबन दो सदियों (३२२ - १८४ई.पू.) से चले रहे शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य का विघटन होने लगा।
अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र ने कर दी। इससे मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया।
पतन के कारण
.अयोग्य एवं निर्बल उत्तराधिकारी,.प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीयकरण,.राष्ट्रीय चेतना का अभाव, .आर्थिक एवं सांस्कृतिक असमानताएँ .प्रान्तीय शासकों के अत्याचार,.करों की अधिकता।
विभिन्न इतिहासकारों ने मौर्य वंश का पतन के लिए भिन्न-भिन्न कारणों का उल्लेख किया है-
  • हर प्रसाद शास्त्री - धार्मिक नीति (ब्राह्मण विरोधी नीति के कारण )
  • हेमचन्द्र राय चौधरी - सम्राट अशोक की अहिंसक एवं शान्तिप्रिय नीति।
  • डी. डी.कौशाम्बी- आर्थिक संकटग्रस्त व्यवस्था का होना।
  • डी.एन.झा-निर्बल उत्तराधिकारी
रोमिला थापर - मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए केन्द्रीय शासन अधिकारी तन्त्र का अव्यवस्था एवं अप्रशिक्षित होना।

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