गुर्जर प्रतिहार


गुर्जर प्रतिहार
गुर्जर प्रतिहार छठी शताब्दी से ११वीं शताब्दी के मध्य उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से पर राज्य करने वाला राजवंश था।मिहिरभोज इनका सबसे महान राजा था|अरब लेखक मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते है| इतिहासकरो का मानना है कि इन गुर्जरो ने भारत को अरब हमलो से लगभग ३०० साल तक बचाया था, इसलिए प्रतिहार (रक्षक) नाम पडा|यद्यपि राष्ट्रकुट्टो, जो कि गुर्जरो के शत्रु थे, ने अपने अभिलेखो इन्हे उन्के किसी एक यज्ञ का प्रतिहार (रक्षक) बताया है|गुर्जर प्रतिहारो का पालवन्श तथा राष्ट्रकुट्ट राजवन्श के साथ कन्नोज को लेकर युध होता था|

गुर्जर    

गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है।यह समुदाय गुर्ज्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है।मुख्यत:गुर्जर मध्य और उत्तर भारत में बसे हैं।

उत्पत्ति

सम्राट मिहिर भोज की मुर्ति:भारत उपवन, अक्शरधाम मन्दिर, नई दिल्ली
गुर्जर अभिलेखो के हिसाब से ये सुर्यवन्शी या रघुवन्शी है।प्राचीन महाकवि राजसेखर ने गुर्जरो को रघुकुल-तिलक तथा रघुग्रामिणी कहा है।७ वी से १० वी शतब्दी के गुर्जर शिलालेखो पर सुर्यदेव की कलाकर्तीया भी इनके सुर्यवन्शी होने की पुष्टि करती है। राजस्थान में आज भी गुर्जरो को सम्मान मिहिर बोलते है, जिसका अर्थ सुर्य  होता है
कुछ इतिहासकरो के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे।कुछ जानकार इन्हे विदेशी भी बताते है क्योन्कि गुर्जरो का नाम एक अभिलेख मे हूणों के साथ मिलता है, परन्तु इसका कोई एतिहासिक प्रमाण नही है।
संस्कृत के विद्वानों के अनुसार, गुर्जर शुद्ध संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ शत्रु का नाश करने वाला अर्थात शत्रु विनाशक होता है।प्राचीन महाकवि राजसेखर ने गुर्जर नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य मे दहाडता गुर्जर कह कर सम्बोधित किया है।
कुछ इतिहासकर कुषाणो को गुर्जर बताते है तथा कनिष्क के रबाटक शिलालेख पर अन्कित 'गुसुर' को गुर्जर का ही एक रूप बताते है।उनका मानना है कि गुशुर या गुर्जर लोग विजेता के रूप मे भारत मे आये क्योन्कि गुशुर का अर्थ उच्च कुलिन होता है।

गुर्जर साम्राज्य

इतिहास के अनुसार ५वी शदी मे भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी।भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरो के अधीन था|चीनी यात्री ह्वेन्सान्ग अपने लेखो मे गुर्जर सम्राज्य का उल्लेख करता है तथा इसे kiu-che-lo बोलता है।
छठी से 12 वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी।मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी।12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए।अरब आक्रान्तो ने गुर्जरो की शक्ति तथा प्रसाशन की अपने अभिलेखो मे भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
इतिहासकार बताते है कि मुगल काल से पहले तक लगभग पुरा राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भुमि के नाम से जाना जाता था  अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे तथा उन्होंने ये भी कहा है कि अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अधिकार कर लेते
१८ वी सदी में भी गुर्जरो के कुछ छोटे छोटे राज्य थे।दादरी के गुर्जर राजा, दरगाही सिन्ह के अधीन १३३ ग्राम थे।मेरठ का राजा गुर्जर नैन सिन्ह था तथा उसने परिक्शित गढ का पुन्रनिर्माण करवाया था। भारत गजीटेयर के अनुसार १८५७ की क्रान्ति मे, गुर्जर तथा मुसलमान् रजपुत, ब्रिटिश के बहुत बुरे दुश्मन साबित हुए।गुर्जरो का १८५७ की क्रान्ति मे भी अहम योगदान रहा है।कोटवाल धानसिन्ह गुर्जर १८५७ की क्रान्ति का शहीद था।

आधुनिक स्थिति

प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।गुर्जर महाराष्ट्र,(जलगाँव जिला) राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं।सामान्यत: गुर्जर हिन्दु , सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं।मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दु गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।

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