जैन धर्म


जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि जैन धर्म की भगवान महावीर के पूर्व जो परम्परा प्राप्त है, उसके वाचक निगंठ धम्म (निर्ग्रन्थ धर्म), आर्हत्धर्म एवं श्रमण परम्परा रहे हैं। पार्र्श्वनाथ के समय तक 'चातुर्याम धर्म' था। भगवान महावीर ने छेदोपस्थानीय चारित्र (पाँच महाव्रत, पाँच समितियाँ, तीन गुप्तियाँ) की व्यवस्था की। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन' जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्का धर्म।
जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूलमंत्र है- णमो अरिहंताणं। णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं॥ अर्थात अरिहंतो को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सर्व साधुओं को नमस्कार। ये पाँच परमेष्ठी हैं।

 

तीर्थंकर

जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है |

क्रमांकतीर्थंकर1ऋषभदेव जी इन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है
2अजितनाथ जी                                               3-सम्भवनाथ जी
4-अभिनंदन जी                                                5-सुमतिनाथ जी
6-पद्ममप्रभु जी                                                  7-सुपाश्वॅनाथ जी
8-चंदाप्रभु जी                        9-सुविधिनाथ जी
 इन्हें पुष्पदन्त भी कहा जाता है
10-शीतलनाथ जी                                             11-श्रेंयांसनाथ जी
12-वासुपूज्य जी                                               13-विमलनाथ जी
14-अनंतनाथ जी                                              15-धर्मनाथ जी
16-शांतिनाथ जी                                               17-कुंथुनाथ जी
18-अरनाथ जी                                                   19-मल्लिनाथ जी
20-मुनिसुव्रत जी                                            21-नमिनाथ जी
22-अरिष्टनेमि जी इन्हें नेमिनाथ भी कहा जाता है जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
23-पाश्वॅनाथ जी
24-महावीर स्वामी जी  इन्हें वर्धमान,सन्मति,वीर,अतिवीर भी कहा जाता है।




सम्प्रदाय

दिगम्बर

दिगम्बर मुनि (श्रमण) वस्त्र नहीं पहनते है। नग्न रहते हैं
"दिगम्बर= दिक + अम्बर अर्थात दिशायें हि जिनके वस्त्र है। जैन मुनि निर्वस्त्र होते हैं,पड्गाहन करने पर एक बार खडे होकर हाथ मे ही आहार लेते है मात्र पिछी कमण्ड्लु रखते है
 पैदल चलते है।

श्वेताम्बर

जैन दर्शन शाश्वत सत्य पर आधारित है। समय के साथ ये सत्य अदृश्य हो जाते है और फिर सर्वग्य या केवलग्यानी द्वारा प्रकट होते है। प्रम्परा से इस अवसर्पिणी काल मे भगवान (ऋषभ or रिषभ) प्रथम तीर्थन्कर हुए, उनके बाद भगवान पार्श्व (877-777 BCE) तथा (महावीर) (599-527 BCE) हुए.
श्वेताम्बर सन्यासी सफ़ेद वस्त्र पहनते हैं और श्वेताम्बर भी तीन भाग मे विभक्त है।
  • मूर्तिपूजक
  • स्थानकवासी

अन्य ग्रन्थ

षट्खण्डागम,                  धवला टीका,                 महाधवला टीका,            कसायपाहुड, जयधवला टीका, समयसार,             योगसार प्रवचनसार,            पञ्चास्तिकायसार,           बारसाणुवेक्खा, आप्तमीमांसा, अष्टशती टीका,           अष्टसहस्री टीका,              रत्नकरण्ड श्रावकाचार,                     तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका,               तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका,             समाधितन्त्र,             इष्टोपदेश, भगवती आराधना,               मूलाचार, गोम्मटसार,                द्रव्यसंग्रह,              अकलंकग्रन्थत्रयी, लघीयस्त्रयी,              न्यायकुमुदचन्द्र टीका,                 प्रमाणसंग्रह,                  न्यायविनिश्चयविवरण, सिद्धिविनिश्चयविवरण,                 परीक्षामुख,                  प्रमेयकमलमार्तण्ड टीका,                   पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भद्रबाहु संहिता

दर्शन

अनेकान्तवाद

स्याद्वाद

प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने ग्रंथ " भगवान महावीर एवं जैन दर्शन " में अनेकांतवाद एवं स्याद्वाद की सम्यग्अवधारणा को स्पष्ट किया है। लेखक ने सिद्ध किया है कि अनेकांत एकांगी एवं आग्रह के विपरीत समग्रबोध एवं अनाग्रह का द्योतक है। इसी प्रकार लेखक ने स्पष्ट किया है कि 'स्याद्वाद' का 'स्यात्‌' निपात शायद, सम्भावना, संशय अथवा कदाचित्आदि अर्थों का वाचक नहीं है। स्याद्वाद का अर्थ है- अपेक्षा से कथन करने की विधि या पद्धति।अनेक गुण-धर्म वाली वस्तु के प्रत्येक गुण-धर्म को अपेक्षा से कथन करने की पद्धति। विभिन्न शास्त्रों एवं ग्रन्थों का पारायण करते समय जिन बिन्दुओं पर व्यतिरेक/विरोधाभास प्रतीत होता है, उन्हें भी इस ग्रंथ में स्पष्ट किया गया है।

जीव और पुद्गगल

जैन आत्मा को मानते हैं वो उसे "जीव" कहते हैं अजीव को पुद्गगल कहा जाता है जीव दुख-सुख, दर्द, आदि का अनुभव करता है और पुनर्जन्म लेता है

मोक्ष

जीवन मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।

चारित्र

  • सम्यक् दर्शन
  • सम्यक् ज्ञान
  • सम्यक् चारित्र

छह द्रव्य

जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल।

सात तत्त्व

जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष,

नौ पदार्थ

जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप।

चार कषाय

क्रोध, मान, माया, लोभ।

चार गति

देव गति, मनुष्य गति, तिर्यञ्च गति, नर्क गति, (पञ्चम गति = मोक्ष)

चार निक्षेप

नाम निक्षेप, स्थापना निक्षेप, द्रव्य निक्षेप, भाव निक्षेप।

ईश्वर

जैन ईश्वर को मानते हैं। लेकिन ईश्वर को सत्ता सम्पन्न नही मानते ईश्वर सर्व शक्तिशाली त्रिलोक का ज्ञाता द्रष्टा है पर त्रिलोक का कर्ता नही |

पाँच महाव्रत

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह

सम्यक्त्व के आठ अंग

निःशंकितत्त्व, निःकांक्षितत्त्व, निर्विचिकित्सत्त्व, अमूढदृष्टित्व, उपबृंहन / उपगूहन, स्थितिकरण, प्रभावना, वात्सल्य.

1 comment:

  1. शत्रुंजय मंदिर, को दुनिया के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से कई पुरातत्वविदों और धार्मिक वास्तुकला के विद्वानों द्वारा माना जाता है। अलंकृत ढंग से और त्रुटिहीन रूप से बनाए गए मंदिरों के भीतर चौबीस तीर्थंकरों की कई सैकड़ों मूर्तिकला संगमरमर की मूर्तियां मिली हैं।

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