सातवाहन एवं कुषाण


सातवाहन प्राचीन भारत का एक राजवंश था इसने ईसापूर्व २३० से लेकर तीसरी सदी (ईसा के बाद) तक केन्द्रीय दक्षिण भारत पर राज किया यह मौर्य वंश के पतन के बाद शक्तिशाली हुआ था इनका जिक्र ८वीं सदी ईसापूर्व में मिलता है पर अशोक की मृत्यु (सन् २३२ ईसापूर्व) के बाद सातवाहनों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था

कुषाण

कुषाण प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए लोगो के मूल का मानते है। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबाटक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते है।
सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वन्श को चीन से आया हुआ माना गया है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में ह्यूची नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी। इसका सामना ह्युगनु कबीलों से हुआ जिसने इन्हें इनके क्षेत्र से खदेड़ दिया। ह्युगनु के राजा ने ह्यूची के राजा की हत्या कर दी। ह्यूची राजा की रानी के नेतृत्व में ह्यूची वहां से ये पश्चिम दिशा में नये चरागाहों की तलाश में चले। रास्ते में ईली नदी के तट पर इनका सामना व्ह्सुन नामक कबीलों से हुआ। व्ह्सुन इनके भारी संख्या के सामने टिक सके और परास्त हुए। ह्यूची ने उनके चरागाहों पर अपना अधिकार कर लिया। यहां से ह्यूची दो भागों में बंट गये, ह्यूची का जो भाग यहां रुक गया वो लघु ह्यूची कहलाया और जो भाग यहां से और पश्चिम दिशा में बढा वो महान ह्यूची कहलाया। महान ह्यूची का सामना शकों से भी हुआ। शकों को इन्होंने परास्त कर दिया और वे नये निवासों की तलाश में उत्तर के दर्रों से भारत गये। ह्यूची पश्चिम दिशा में चलते हुए अकसास नदी की घाटी में पहुचे और वहां के शान्तिप्रिय निवासिओं पर अपना अधिकार कर लिया। सम्भवतः इनका अधिकार बैक्ट्रिया पर भी रहा होगा। इस क्ष्रेत्र में वे लगभग १० वर्ष ईपू तक शान्ती से रहे। चीनी लेखक फान-ये ने लिखा है कि यहां पर महान ह्यूची हिस्सों में विभक्त हो गये - स्यूमी, कुई-शुआंग, सुआग्म, ,, बाद में कुई-शुआंग ने क्यु-तिसी-क्यो के नेतृत्व में अन्य चार भागों पर विजय पा लिया और क्यु-तिसी-क्यो को राजा बना दिया गया। क्यु-तिसी-क्यो ने करीब ८० साल तक शासन किया। उसके बाद उसके पुत्र येन-काओ-ट्चेन ने शासन सम्भाला। उसने भारतीय प्रान्त तक्षशिला पर विजय प्राप्त किया। चीनी साहित्य में ऐसा विवरण मिलता है कि, येन-काओ-ट्चेन ने ह्येन-चाओ (चीनी भाषा में जिसका अभिप्राय है - बड़ी नदी के किनारे का प्रदेश जो सम्भवतः तक्षशिला ही रहा होगा)
यहां से कुई-शुआंग की क्षमता बहुत बढ गयी और कालान्तर में उन्हें कुषाण कहा गया।

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