लोधी वंश


लोधी वंश (पश्तो / उर्दु: سلطنت لودھی) खिलजी अफगान लोगों की पश्तून जाति से बना था। इस वंश ने दिल्ली के सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया। इन्होंने 1451 से 1526 तक शासन किया।
बहलूल लोधी: After the last Sayyid dynasty ruler of Delhi, Mohammed-bin-Farid, died in 1451, बहलूल खान लोधी, a warrior and governor of Punjab, took the throne of the Delhi sultanate. He quelled uprisings in the provinces and garnered political support by granting extensive lands to his native Afghan nobles.
सिकंदर लोधी: Bahlul nominated his second son, Sikandar Lodhi (born Nizam Khan) to succeed him. However, nobles backed the rule of Barbak Shah, his elder son, who had been appointed viceroy of Jaunpur. A power struggle ensued; Sikandar eventually won the struggle against Barbak and his ally, Hussain Shah of Jaunpur. He proved to be a capable ruler, and was somewhat merciful to his opponents. He allowed Barbak the governorship of Jaunpur and also resolved differences with an uncle, Alam Khan, who had conspired to overthrow him. Sikandar also brought many Afghan nobles under his control, conquered Gwalior and Bihar, and encouraged trade across his holdings. He was a kind ruler and founded the present-day city of Agra in 1503.
इब्राहिम लोधी: Sikandar's son Ibrahim Lodhi took the throne in 1517. His rule began on a problematic note; in an attempt to divide his kingdom, the nobles recognized his break-away brother Jalal Khan as independent ruler over Jaunpur. Ibrahim had his brother assassinated in an attempt to consolidate power. However, he never really gained the support of his nobles, as he ruled by fear. He was very strict and disrespectful to his nobles.
Ibrahim retook Gwalior in a military campaign and then menaced Mewar, then ruled by Rana Sanga. Under the premise that Ibrahim threatened to expand the Delhi Sultanate into the desert regions of Rajasthan, which had largely been left alone by previous sultans, Rana Sanga was able to unite the rajput chieftains of the desert into a shortlived military alliance. This alliance made common cause with discontented Muslim nobles of the sultanate to invite Babur, the ruler of Kabul, to overthrow the Lodhi dynasty.
Babur was officially invited to take India by Daulat Khan Lodhi, a governor in Lahore, and by Alam Khan, an uncle of Sultan Ibrahim Lodhi. Babur was able to defeat the Lodhis at the Battle of Panipat in 1526. His army's use of artillery, plus the desertion of many nobles and soldiers from Ibrahim Lodhi's forces, led to victory despite Babur being heavily outnumbered. This victory caused the Delhi sultanate to be supplanted by the Mughal Dynasty founded by Babur.
The Lodhis continued to control Agra, until it too was taken by the Mughal emperor Akbar.

बहलूल खान लोधी

बहलूल खान लोधी (मृत्यु:1489) दिल्ली के लोधी वंश का प्रथम सुलतान बना, जब पिछले सैयद वंश के अंतिम शासक पदच्युत हुआ। बहलूल एक अफगान व्यापारियों के परिवार में पैदा हुआ था। बाद में यह एक प्रसिद्द योद्धा होकर पंजाब का राज्यपाल बना। इसने दिल्ली सल्तनत अप्रैल 19,1451 को ग्रहण किया।
बहलूल खान ने विद्रोहियों को शांत करने हेतु बहुत प्रयास किये, और अपने राज्य की सीमाओं को ग्वालियर, जौनपुर और ऊपरी उत्तर प्रदेश तक फैलाया। सन 1486 में , अपने पुत्र, बर्बक शाह को जौनपुर का राज्यपाल नियुक्त किया। इससे कुछ समय बाद उत्तराधिकार की समस्या खडी़ हुई, जो कि इसके दूसरे पुत्र सिकंदर लोधी ने दावा कर खडी़ की। सिकंदर को उत्तराधिकारी स्वयं बहलूल ने ही बनाया था। बाद में बहलूल की मृत्योपरांत वही सुल्तान बना सन 1489 में।

सिकंदर लोधी

सिकंदर लोधी (जन्म नामः निजा़म खान, मृत्यु नवंबर 21, 1517) लोधी वंश का द्वितीय शासक था। अपने पिता बहलूल खान लोधी की मृत्यु जुलाई 17, 1489 उपरांत यह सुल्तान बना। इसके सुल्तान बनने में कठिनई का मुख्य कारण था इसका बडा़ भाई, बर्बक शाह, जो तब जौनपुर का राज्यपाल था। उसने भी इस गद्दी पर्, अपने पिता के सिकंदर के नामांकन के बावजूद, दावा किया था। परंतु सिकंदर ने एक प्रतिनिधि म्ण्डल भेज कर मामला सुलझा लिया, और एक बडा़ खून-खराबा बचा लिया। असल में इसने बर्बक शाह को जौनपुर सल्तनत पर राज्य जारी रखने को कहा, एवं अपने चाचा आलम खान से भी विवाद सुलझा लिये, जो कि तख्ता पलट करने की योजना बना रहा था।

सिकंदर एक योग्य शासक सिद्ध हुआ। वह अपनी प्रजा के लिये दयालु था। उसने अपने राज्य को को ग्वालियर एवं बिहार तक बढा़या। उसने अल्लाउद्दीन हुसैन शाह एवं उसकी बंगाल के राज्य से संधि की। वह अपने देशी अफगान नवाबों को नियंत्रण में रखने में सफल हुआ, एवं अपने राज्य पर्यन्त व्यापार को खूब बढा़वा दिया। सन 1503 में, उसने वर्तमान आगरा शहर की नींव रखी।
उसकी मृत्यु सन 1517 में प्रजा के लिये बडा़ आघात थी, जैसा कि उसके दिल्ली में शानदार मकबरे से भी सिद्ध होता है।

इब्राहिम लोध

इब्राहिम लोधी (मृत्यु 21 अप्रैल, 1526) दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था। वह अफ़ग़ान था। उसने भारत पर 1517-1526 तक राज्य किया, और फिर मुगलों द्वारा पराजित हुआ, जिन्होंने एक नया वंश स्थापित किया, जिस वंश ने यहाँ तीन शताब्दियों तक राज्य किया।
इब्राहिम को अपने पिता सिकंदर लोधी के मरणोपरांत गद्दी मिली। परंतु उसकी शासकीय योग्यताएं अपने पिता समान नहीं थीं। उसे अनेक विद्रोहों का सामना करना पडा़।
राणा सांगा ने अपना साम्राज्य पश्चिम उत्तर प्रदेश तक प्रसार किया, और आगरा पर हमले की धमकी दी। पूर्व में भी विद्रोह शुरु हो गया। इब्राहिम ने पुराने एवं वरिष्ठ सेना कमाण्डरों को अपने वफादार नये वालों से बदल कर दरबार के नावाबों को भी नाखुश कर दिया था। तब उसे अपने लोग ही डराने धमकाने लगे थे। और अंततः अफगानी दरबारियों ने बाबर को काबुल से भारत पर आक्रमण करने के लिये आमंत्रित किया।
इब्राहिम की मृत्यु पानीपत के प्रथम युद्ध में हो गयी। बाबर उच्च कोटि के सैनिक एवं अपने लोधी सैनिकों का अलग होना उसके पतन का कारण बना, हालांकि उसकी सेना काफी बडी़ थी।



पानीपत का प्रथम युद्ध

पानीपत का पहला युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था, और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों मे से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था।
सन् 1526 में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर, की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी, की एक ज्यादा बड़ी से
ना को युद्ध में परास्त किया।
युद्ध को 21 अप्रैल को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है। पानीपत वो स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गयीं।
एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 15000 के करीब सैनिक और 20-24 मैदानी तोपें थीं। लोधी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोधी की ओर से लड़े थे।


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